नमस्कार दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम पादप जगत के बारे कम्प्लीटली अध्ययन करने वाले है और एकदम सरल भाषा में जानेंगे। इसमें आपको पादप जगत या वनस्पति जगत से सम्बंधित सभी जानकारियाँ मिल जाएँगी लेकिन इस आर्टिकल को शुरू से लेकर आखिरी तक पढ़ना होगा। तभी आपको अच्छी तरह से समझ में आएगा तो चलिए बिना समय बर्बाद किये स्टेप बाई स्टेप पढ़ते है।
पादप जगत किसने दिया था? Who gave the Plant kingdom?
पादप जगत को वैज्ञानिक कार्ल लीनियस सबसे पहले प्रस्तुस किया था इन्होने ही सबसे पहले जीवो का वर्गीकरण किया था जिसमे इन्होने जीवो को दो जगत में बाँट दिया था।
- पादप जगत (Kingdom Plantae)
- प्राणी जगत (Kingdom Animalia)
इन्होने ही जीवों को कोशिका भित्ति के आधार पर वर्गीकृत किया था। यानि की जिनमे कोशिका भित्ति होती थी उन्हें पादप जगत में रखा और जिनमे कोशिका भित्ति नही मिल रही थी उन्हें जंतु जगत में रख दिया।
इन्होंने कृत्रिम वर्गीकरण किया था
कृत्रिम वर्गीकरण किसे कहते है?
जब किसी जीव का कुछ बाह्य आकारिकी के लक्षणों को ध्यान में रखकर वर्गीकरण किया जाता है तो ऐसे वर्गीकरण को कृत्रिम वर्गीकरण कहा जाता है। जैसे – पत्तियाँ, रंग, आकृति आदि।
यह वर्गीकरण गलत था क्योकि इसमें सिर्फ बाहरी लक्षणों के आधार पर वर्गीकृत किया गया था जो कि सही नही है। अब इसको सुधारने के लिए एक और वर्गीकरण सिस्टम आया जिसका नाम प्राकृतिक वर्गीकरण तंत्र (Natural system of classification) था।
प्राकृतिक वर्गीकरण किसे कहते है?
जब जीवो का बाहरी और आंतरिक लक्षणों के आधार वर्गीकरण किया जाता है तो ऐसे वर्गीकरण को प्राकृतिक वर्गीकरण कहते है।
इस वर्गीकरण को बड़े स्तर पर वैज्ञानिक जॉर्ज बेन्थम और जोसेफ डाल्टन हुकर ने समझाया था। इस वर्गीकरण में भी एक कमी रह गयी थी जिसको पूरा करने के लिए एक और वर्गीकरण आयी जिसका नाम जातिवृतिय वर्गीकरण है।
जातिवृतीय वर्गीकरण किसे कहते है? (What is Phylogenetic system of classification in hindi?)
जब आंतरिक और बाहरी लक्षणों के साथ – साथ जातिवृतीय सम्बन्ध के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है तो ऐसे वर्गीकरण को जातिवृतीय वर्गीकरण कहते है।
जातिवृतीय सम्बन्ध किसे कहते है?
पूर्वजता के आधार पर जो सम्बब्ध देखा जाता है कि किस के पूर्वज ज्यादा निकट है तो इसी सम्बन्ध को जातिवृतीय सम्बन्ध कहते है। जैसे हमारे पूर्वज कपियो (चिम्पांजी) से ज्यादा सम्बन्ध दिखाते है।
पादप जगत के लक्षण –
- ये बहुकोशिकीय और यूकैरियोटिक होते है। इनमे कुछ अपवाद भी है यानि कि एकल कोशिकीय भी है।
- इनमे वृद्धि अनिश्चित होती है।
- इनमे निम्न स्तर की संवेदनशीलता भी पायी जाती है। जैसे – छुईमुई का पौधा।
- इनमे कोशिका भित्ति सेलुलोज की बनी होती है।
- ये स्वपोषी / प्रकाश संश्लेषी उत्पादक होते है ।
- ये स्थलीय और जलीय दोनों प्रकार के होते है।
- इनमे खाद्य पदार्थ स्टार्च के रूप में संचित होता है।
- इनमे अलैंगिक जनन और लैंगिक जनन दोनों प्रकार का होता है।
- इनमे पीढ़ी एकांतरण पाया जाता है।
- वनस्पति विज्ञान के जनक थियोफ्रेस्ट्स है।
- ये प्रकाश संश्लेषण करके अपना पोषण प्राप्त करते है क्योकि इनकी कोशिका में हरित लवक होता है।
लेकिन कुछ ऐसे पादप है जो विषमपोषी होते है। ये अपना पोषण कीड़ो से प्राप्त करते है जैसे – यूट्रिक्युलेरिया (Bladderwort), वीनस फ्लाई ट्रेप। हो सकता है आप लोगो ने फिल्मो या विडियो में कुछ फूलो को देखा होगा कि जब उन फूलो पर कीड़े जाकर बैठते है तो वह पुष्प बंद हो जाता है और उसके अन्दर कीड़े फस जाते है। जिसके बाद ये पुष्प इन कीड़ो का अपघटन करके पोषण प्राप्त कर लेते है।
पादप जगत का वर्गीकरण (Classification of Plant kingdom) –
पादप जगत को वैज्ञानिक आईक्लर ने दो भागो में बाँटा है।
- क्रिप्टोगेमस
- फिनेरोगेमस
क्रिप्टोगेमस क्या होते है?
इस समूह में बीजरहित पादपो को रखा गया है यानि कि जिनमे बीज नही पाए जाते है। इस समूह को तीन भागो में विभाजित किया गया है।
- थैलोफाईट
- ब्रायोफाईट
- टेरिडोफाईट
थैलोफाईट (शैवाल) के लक्षण –
- शैवालो का अध्ययन Phycology/Algology कहलाता है।
- शैवाल मोनेरा जगत, प्रॉटिस्टा जगत और पादप जगत तीनो जगत में पाए जाते है।
- इनके शरीर को थैलस कहा जाता है। थैलस क्या होता है देखिये जब पादप का शरीर जड़, तना, पत्तियों, फल और फूल में विभेदित नही होता है तो उसे थैलस कहा जाता है।
- ये जलीय होते है। ये समुद्र और स्वच्छ जल दोनों में मिलते है।
- ये एकल कोशिकीय भी होते है। जैसे – Chlamydomonas.
- ये कॉलोनी बनाकर भी रहते है। जैसे – Volvox
- ये तंतुमय भी होते है जैसे – Spirogyra, Ulothrix etc.
- इनमे अलैंगिक जनन और लैंगिक जनन दोनो प्रकार के होते है।
अलैंगिक जनन (Asexual reproduction) –
अलैंगिक जनन में विखंडन और बीजाणु जनन होता है और बीजाणु दो प्रकार के हो सकते है। अचल बीजाणु और चल बीजाणु। इस जनन में ज्यादातर चल बीजाणु होता है। जिनमे कशाभिका मिलती है उन्हें चल बीजाणु कहते है क्योकि इसी कशाभिका से वो चलते है और जिनमे कशाभिका नही मिलते है उन्हें अचल बीजाणु कहते है।
लैंगिक जनन (Sexual reproduction) –
लैंगिक जनन में युग्मक बनते है और ये युग्मक तीन प्रकार के होते है। समयुग्मक, असमयुग्मक और विषम युग्मक।
समयुग्मक (Isogamete) – ऐसे युग्मक जिनकी आकृति एवं आकार दोनों समान होते है समयुग्मक कहलाते है। ये युग्मक दो प्रकार के होते है। कशाभिका युक्त समयुग्मक जैसे – Spirogyra, Chlamydomonas और कशाभिकारहित समयुग्मक जैसे – Ulothrix
असमयुग्मक (Anisogamete) – ऐसे युग्मक जिनकी आकृति समान होती है लेकिन आकार असमान होती है तो ऐसे युग्मक असमयुग्मक कहलाते है। जैसे – Udorina
विषम युग्मक (Oogamete) – ऐसे युग्मक जिनकी आकृति एवं आकार दोनों असमान होते है विषम युग्मक कहलाते है। इसमें छोटा युग्मक नर युग्मक होता है और बड़ा युग्मक मादा युग्मक होता है। जैसे – Volvox, Fucus.
शैवाल का वर्गीकरण (Classification of algae in hindi) –
शैवाल को मुख्यरूप से वर्णक या रंगों के आधार पर तीन भागो में बांटा गया है।
- हरी शैवाल/Chlorophyceae)
- भूरी शैवाल/Phaeophyceae)
- लाल शैवाल/Rhodophyceae
सभी शैवालो में क्लोरोफिल – a और बीटा Carotenoid पाया जाता है। ये अलग – अलग रंग के इसलिए है क्योकि इनमें अलग – अलग प्रकार के वर्णक मिलते है।
हरी शैवाल/Chlorophyceae) –
- इसमें क्लोरोफिल- a और बीटा Carotenoid पाया जाता है इसके साथ – साथ क्लोरोफिल- b पाया जाता है, और यही क्लोरोफिल- a, b इनमे इतनी ज्यादा मात्रा में होते है कि इनका रंग हरा कर देते है। ये क्लोरोफिल हरित लवक में मिलते है।
- इनमे खाद्य पदार्थ या भोजन स्टार्च के रूप में संचित होता है। और यह स्टार्च जहाँ पर संचित होता है उसे पाईरेनोइड कहते है।
- इनमे कोशिका भित्ति दो स्तरों में बंटी होती है। बाह्य स्तर और आंतरिक स्तर। बाह्य स्तर पैक्टोज की बनी होती है और आन्तरिक स्तर सेलुलोज की बनी होती है।
- इनमे जो चल बीजाणु होते है उनके शीर्ष पर एक समान रूप से कशाभिका पायी जाती है। जिसकी संख्या 2-8 हो सकती है।
- उदाहरण – Chlamydomonas, Volvox, Ulothrix, Spirogyra, Chara, etc.
भूरी शैवाल/Phaeophyceae) –
- इसमें क्लोरोफिल- a और c होता है। Carotenoid भी होता है। इसके साथ – साथ एक और वर्णक होता है जिसका नाम Fucoxanthin है और यही वर्णक भूरा रंग प्रदान करता है।
- ये ज्यादातर समुद्र में पाये जाते है।
- इनकी आकार और आकृति ज्यादातर तंतुमय होती है। यह तंतुमय दो तरह की होती है। एक सरल तंतुमय और दूसरा सघन तंतुमय। सरल तंतुमय का मतलब इनमे तंतु कम होती है जैसे – Ectocarpus और सघन तंतुमय का मतलब इनमे बहुत सारे तंतु होते है जैसे – केल्प और ये केल्प शैवाल सौ – सौ मीटर लम्बी होती है।
- इनमे खाद्य पदार्थ लेमीनेरम और मैनीटोल के रूप में संचित होता है। यह एक तरह का कार्बोहाइड्रेट है।
- इनके कोशिका भित्ति के बाहर फाईकोकोलोइडल पदार्थ मिलता है जिसे एल्जिन कहते है। इसका उपयोग पेण्ट, पॉलिश बनाने में किया जाता है।
- इनके अलैंगिक जनन में बना हुआ बीजाणु नाशपती के आकार का होता है और इस बीजाणु में पार्श्व से दो कशाभिका निकली होती है जो असमान होती है।
- इनके लैंगिक जनन में बना हुआ युग्मक भी नाशपती आकार का होता है।
- इनका शरीर या थैलस अगुणित होता है। सिर्फ Fucus द्विगुणित होता है।
- उदाहरण – Dictyota, Ectocarpus, Laminaria, Sargassum, Fucus.
- Sargassum को भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है।
लाल शैवाल/Rhodophyceae –
- इसमें क्लोरोफि – a और d होता है Carotenoid तो होता ही है इसमें भी एक और वर्णक होता है जिसका नाम Phycoerythrin है और यह वर्णक इस शैवाल को लाल रंग प्रदान करता है।
- ये ज्यादातर समुद्र के आधार पर मिलती है और यहाँ का पानी गर्म होता है।
- इनमे भोजन फ्लोरिडियन स्टार्च के रूप में संचित होता है और यह ग्लाईकोजन और अमाइलोपैक्टिन के समान संरचना होता है।
- इनके अलैंगिक जनन में जो बीजाणु बनते है वो अचल होते है।
- इनके लैंगिक जनन में जो युग्मक बनाते है वो भी अचल होते है।
- उदाहरण – जैलिडियम, ग्रेसिलेरिया, कोंड्रस क्रिस्पस, पोलिसिफोनिया, पोरफायरा आदि।
ब्रायोफाईट क्या होते है? (What is Bryophytes in hindi) –
- ये पहाड़ियों पर नम, छायादार स्थान पर मिलते है, और जब ऐसे स्थानों पर पादप मिलते है तो उन्हें Sciophytes कहते है।
- इन्हें पादप जगत के उभयचर कहा जाता है। क्यों कहा जाता है क्योकि ये सर्वप्रथम स्थलीय पादप है लेकिन जब ये युग्मक बनाते है तो इनके युग्मक जल में जाते है और वहां पर निषेचन करते है और निषेचन होने के बाद जो नया जीव बनता है वह फिर से स्थल पर आ जाता है। यानि कि इनका जीवन स्थल पर तो है लेकिन ये जल पर भी निर्भर है।
- इनका शरीर थैलस होता है, और यह थैलस अगुणित होता है।
- इनके थैलस में मूल के जैसे संरचना निकली होती है जिसे मूलाभ कहते है।
- इनके मुख्य पादप शरीर को युग्मकोदभिद (Gametophyte) कहते है।
ब्रायोफाईट का जीवन चक्र (Life cycle of Bryophytes) –
इनके नर युग्मकोदभिद में नर जनन अंग होता है जिसे पुंधानी (Antheridium) कहते है और मादा युग्मकोदभिद में मादा जनन अंग होता है जिसे स्त्रीधानी (Archegonium) कहते है और ये दोनों संरचनाये बहुकोशिकीय होती है और इनकी प्रत्येक कोशिकाए अगुणित होती है।
अब ये दोनों नर और मादा युग्मक बनायेगे, नर युग्मक को पुमंग (Antheridia) और मादा युग्मक को अंड (Egg) कहा जाता है। ये दोनों युग्मक अगुणित होते है। पुमंग द्विकशाभिकीय होता है। यह पुमंग जल के माध्यम से होता हुआ स्त्रीधानी में पहुँच जाता है जिसके बाद निषेचन शुरू हो जाता है और निषेचन के बाद युग्मनज (Zygote) बनता है।
यह युग्मनज द्विगुणित होता है। उसके बाद यह युग्मनज लगातार विभाजन करके एक संरचना बनाती है जिसे बीजाणुदभिद (Sporophyte) कहते है। यह बीजाणुदभिद युग्मकोदभिद से चिपका रहता है और इससे पोषण प्राप्त करता है क्योकि यह प्रकाश संश्लेषण नही सकता है।
इस बीजाणुदभिद में तीन भाग होते है। पाद (Foot), सीटा (Seta) और कैप्सूल, पाद चिपकने में सहायता करता है और सीटा पोषण को कैप्सूल में भेजने का कार्य करता है क्योकि कैप्सूल में बहुत से द्विगुणित कोशिकाए होती है। इन द्विगुणित कोशिकाओ को बीजाणु मातृकोशिका (Spore mother cell) कहा जाता है।
ये मातृकोशिकाए अर्धसूत्री विभाजन करेंगी जिससे एक और नई अगुणित संरचना बनेगी जिसे बीजाणु (Spore) कहा जाता है। इनमे एलेटस नाम की कुछ संरचनाये होती है जो वातावरण से जल अवशोषित करती है जिससे कैप्सूल फट जाता है और बीजाणु बाहर आ जाते है। अब ये बीजाणु बाहर आ करके लगातार विभाजन करके युग्मकोदभिद बना देते है। यह प्रक्रिया बार – बार चलेगी और ब्रायोफाईट अपनी संख्या बढ़ाते जायेंगे।
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ब्रायोफाईट का वर्गीकरण (Classification of Bryophytes) –
ब्रायोफाईट दो प्रकार के होते है।
- लीवरवर्ट (Hepaticopsida)
- मॉस (Muscidae)
लीवरवर्ट (Hepaticopsida) | मॉस (Muscidae) |
इसमें बीजाणु से प्रत्यक्ष अंकुरण द्वारा युग्मकोदभिद बनाता है। | इसमें अप्रत्यक्ष अंकुरण के द्वारा युग्मकोदभिद बनता है यानि कि बीजाणु के बाद प्रथम तंतु (Protonema) बनता है और यह तंतु आगे चलकर युग्मकोदभिद बनाता है। |
लीवरवर्ट (Hepaticopsida) –
- इनका युग्मकोदभिद संरचना लीवर के समान होता है इसलिए इसे लीवरवर्ट कहते है।
- मुख्य उदाहरण – मारकेंशिया।
- ये विपरीत परिस्थितियों में ये अलैंगिक जनन करते है और अलैंगिक जनन में ये कप जैसी संरचना बनाते है जिसे जेमा कप कहा जाता है और इस कप पर हरी रंग की बहुकोशिकीय संरचना बनती है जिसे जेमा कहा जाता है और ये वृद्धि करती है जिसमें से कुछ भाग टूट कर जमीन पर गिर जाता है और यह टूटा हुआ भाग वृद्धि करके युग्मकोदभिद बनाता है।
- इसमें बीजाणुदभिद युग्मकोदभिद पर पूर्णतः परजीवी होता है।
मॉस (Muscidae) –
- इसमें अप्रत्यक्ष अंकुरण होता है।
- इसका बीजाणुदभिद युग्मकोदभिद पर अर्द्ध परजीवी होता है क्योकि इसका बीजाणुदभिद प्रकाश संश्लेषण करता है। जिस वजह से यह भोजन बना लेता है लेकिन आवास के लिए युग्मकोदभिद से चिपका रहता है।
- उदाहरण – Funaria, Polytrichum, Sphagnum, etc.
टेरिडोफाईट क्या होते है? (What is Pteridophytes in hindi?)
- इन्हें सजावट के रूप में उपयोग किया जाता है।
- विकास की दृष्टि से ये सर्वप्रथम स्थलीय पादप होते है।
- इनमे सर्वप्रथम संवहन ऊतक आये थे।
- इनका मुख्य पादप शरीर बीजाणुदभिद होता है और इनका मुख्य पादप शरीर मूल, तना और पर्ण में विभेदित होता है।
- यह 350 मिलियन वर्ष पूर्व प्रभावी रूप से मिल रहे थे यानि कि बहुत ही अधिक संख्या में मिल रहे थे।
- इन्हें पादप जगत के सरीसृप कहा जाता है। क्यों कहा जाता है क्योकि विकास की उत्पत्ति के आधार पर सबसे पहले मछलीय → उभयचर → सरीसृप आये है। तो ये उभयचर के बाद आये है इसलिए इन्हें सरीसृप कहा जाता है न कि ये रेंगने वाले जीव है।
- ये भी स्थल पर मिलते रहे है लेकिन ये भी जल पर निर्भर होते है।
टेरिडोफाईट का जीवन चक्र (Life cycle of Pteridophytes in hindi) –
इनके मुख्य पादप शरीर को बीजाणुदभिद कहते है और यह बीजाणुदभिद द्विगुणित होता है इन पर दो तरह के पर्ण पाये जाते है और ये दोनों पर्ण अलग – अलग कार्य करते है और कार्य के आधार पर इनका अलग – अलग नाम भी है एक पर्ण को सामान्य पर्ण या Tropophyll कहते है यह प्रकाश संश्लेषण से सम्बंधित होता है और दूसरे पर्ण को बीजाणु पर्ण या Sporophyll कहते है।
यह पर्ण जनन से सम्बंधित होता है इस बीजाणु पर्ण पर बीजाणुधानी होती है और इस बीजाणु धानी के अन्दर कोशिकाए होती है जिन्हें बीजाणु मातृकोशिका कहा जाता है। ये सभी कोशिकाए द्विगुणित होती है अब ये कोशिकाए अर्धसूत्री विभाजन करके ढेर सारे अगुणित बीजाणु बनाती है जिससे बीजाणुधानी फट जाती है और यह बीजाणु बाहर जमीन पर आ गिरते है।
उसके बाद लगातार विभाजित होकर के एक छोटी सी संरचना बनाती है जिसे युग्मकोदभिद या प्रोथैलस कहा जाता है। इस युग्मकोदभिद में पुंधानी और स्त्रीधानी दोनों मिलती है। इस पुधानी में से पुमंग निकल कर जल के माध्यम से दूसरे युग्मकोदभिद के स्त्रीधानी में जाकर अंड से निषेचन करके द्विगुणित युग्मनज बनाता है और यह युग्मनज विकास करके भ्रूण बनता है और यह भ्रूण जमीन गिरकर विकसित होकर मुख्य पादप शरीर (बीजाणुदभिद) बनाता है इस जीवन चक्र में समानबीजाणु होते है इसलिए इसे समबीजाणुता कहते है।
टेरिडोफाईट का एक और जीवन चक्र –
इसमें दो प्रकार के बीजाणुदभिद होते है और दोनों बीजाणुदभिद पर अलग – अलग प्रकार के पर्ण होते है एक बीजाणुदभिद के पर्ण को लघुबीजाणुपर्ण कहा जाता है और इस पर्ण पर लघुबीजाणुधानी होता है और इस लघुबीजाणुधानी के अन्दर लघुबीजाणु मातृकोशिका होती है।
इस कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन होता है जिसके फलस्वरूप बीजाणु बनते है और इस बीजाणु को लघुबीजाणु कहते है लघुबीजाणु इसलिए कहते है क्योकि यह गुरु बीजाणु से छोटा होता है उसके बाद जब ढेर सारे लघुबीजाणु हो जाते है तो बीजाणुधानी फट जाती है और लघुबीजाणु बाहर आ जाते है अब यह लघुबीजाणु आगे चलकर युग्मकोदभिद बनाता है और इस युग्मकोदभिद में सिर्फ पुंधानी मिलता है इसलिए इसे नर युग्मकोदभिद कहा जाता है।
दूसरे बीजाणुदभिद के पर्ण को गुरुबीजाणुपर्ण कहा जाता है क्योकि इस पर्ण पर गुरुबीजाणुधानी होता है और इस गुरुबीजाणुधानी के अन्दर गुरुबीजाणु मातृकोशिका होती है।
अब इस कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन होता है जिसके फलस्वरूप बीजाणु बनते है और इस बीजाणु को गुरुबीजाणु कहते है गुरुबीजाणु इसलिए कहते है क्योकि यह लघुबीजाणु से बड़ा होता है उसके बाद जब ढेर सारे गुरुबीजाणु हो जाते है तो गुरुबीजाणुधानी फट जाती है और गुरुबीजाणु बाहर आ जाते है।
यह गुरुबीजाणु आगे चलकर युग्मकोदभिद बनाता है और इस युग्मकोदभिद में सिर्फ स्त्रीधानी मिलता है इसलिए इसे मादा युग्मकोदभिद कहा जाता है उसके बाद नर युग्मक जल के द्वारा मादा युग्मक के पास जाता है उसके बाद निषेचन करके भ्रूण फिर बीजाणुदभिद बनाता है अब आपने देखा कि इस जीवन चक्र में असमान बीजाणु है इसलिए इसे विषमबीजाणुता कहते है।
उदाहरण – सिलैजिनेला और साल्वीनिया।
टेरिडोफाईट का वर्गीकरण (Classification of Pteridophytes in hindi) –
टेरिडोफाईट को चार समूहों में बाँटा गया है
साइलोपसीडा –
इस समूह के सभी पादप विलुप्त हो चुके सिर्फ एक को छोड़कर जिसका नाम सीलोटम है इसे जीवित जीवाश्म भी कहते है।
लाइकोपसीडा –
इस वर्ग के दो उदाहरण – सिलैजिनेला और लाइकोपीडियम है।
स्फीनोपसीडा –
इस वर्ग को हॉर्स टेल भी कहते है क्योकि इस वर्ग के पादपो की पर्ण घोड़े की पूँछ की तरह निकली होती है उदाहरण – इक्वीसीटम ज्यादातर इसी के कारण जंगलो में आग लगती है।
कैसे लगती है आग जंगलो में – इनके पर्ण और तने में सिलिका पायी जाती है और जब इनकी पत्तियां और तने आपस में टकराती है तो सिलिका और सिलिका के घर्षण से चिंगारी निकलती है जिससे आग लग जाती है।
टीरोपसीडा –
इसमें सबसे पहले बीज धारण करने की क्षमता देखि गई थी इसमें फर्न को रखा गया है।
उदाहरण – ड्रायोप्टेरिस, ऐडिऐन्टम, टेरिस
ये तो हो गया क्रिप्टोगेमस के बारे में अब हमारा अगला पॉइंट है –
फिनेरोगेमस क्या होते है?
इसके अन्दर बीजयुक्त पादपो को रखा गया है। यानि कि जिनमे बीज पाये जाते है। इसे दो भागो में बाँटा गया है।
- अनावृतबीजी (Gymnosperm)
- आवृतबीजी (Angiosperm)
अनावृतबीजी के लक्षण –
इनके बीज के ऊपर आवरण नही मिलता है इसलिए इन्हें अनावृतबीजी कहते है।
इनमे पुष्प नही होते है या ये अपुष्पीय होते है।
इनका मुख्य पादप शरीर बीजाणुदभिद होता है जो द्विगुणित होता है।
इनका शरीर तना, पर्ण और मूल में विभेदित है।
तना – इनमे तना झाड़ियो के रूप में हो सकता है और वृक्ष के रूप में भी हो सकता है लेकिन ज्यादातर वृक्ष के रूप में होता है। इनका तना शाखित भी हो सकता है और अशाखित भी हो सकता है। शाखित Pinus में होता है और अशाखित Cycas में होता है। सबसे लम्बा Gymnosperm सिकुआ होता है।
मूल – इनमे मूल दो प्रकार का होता है।
कवक मूल (Mycorrhiza) – कुछ ऐसे पेड़ होते है जिनके जड़ो के पास कवक आ करके सहजीवी सम्बन्ध दर्शाते है यानि कि जल और खनिजो को अवशोषित करके देती है उदाहरण – Pinus इसमें कवक मूल पाए जाते है
प्रवालमूल (Coralloid root) – इसमें नील हरित शैवाल सहजीवी सम्बन्ध दर्शाते है ये नाइट्रोजनीस्थिरीकरण करते है। उदाहरण – Cycas
इनमे मूसला मूल (Taproot) होती है।
ये Gymnosperm अधिकतर ठंडे क्षेत्रो या जहाँ पानी कम होता है वहाँ पायी जाती है इसलिए इनकी पर्ण छोटी और सुई के समान होती है जिन पर एक मोम की परत चढ़ जाती है जिसे क्यूटिकल कहा जाता है और इस क्यूटिकल में छोटे – छोटे रंध्र होते है जिसे गर्तिकारंध्र कहते है।
अनावृतबीजी का जीवन चक्र (Life cycle of Gymnosperm in hindi) –
इसमें जीवन चक्र ज्यादातर विषमबीजाणुता होता है।
इसमें भी वही दो प्रकार के बीजाणुदभिद होते है और दोनों बीजाणुदभिद पर अलग – अलग प्रकार के पर्ण होते है एक बीजाणुदभिद के पर्ण को लघुबीजाणुपर्ण कहा जाता है और इस पर्ण पर लघुबीजाणुधानी होता है और इस लघुबीजाणुधानी के अन्दर लघुबीजाणु मातृकोशिका होती है।
अब इस कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन होता है जिसके फलस्वरूप बीजाणु बनते है और इस बीजाणु को लघुबीजाणु कहते है। इसमें यह लघुबीजाणु, बीजाणुधानी के अन्दर ही अंकुरण या विकास करता है और इस बीजाणु के चारो तरफ एक आवरण चढ़ जाता है तो इस संरचना को नर युग्मकोदभिद कहते है।
इसी नर युग्मकोदभिद को परागकण कहते है और इसके अन्दर के केन्द्रक को नर युग्मक कहते है इसमे सिर्फ एक नर युग्मक होता है।
दूसरे बीजाणुदभिद के पर्ण को गुरुबीजाणुपर्ण कहा जाता है क्योकि इस पर्ण पर गुरुबीजाणुधानी होता है इसे बीजाण्ड भी कहा जाता है और यही आगे चलकर बीज बनाता है इस बीज पर किसी भी प्रकार आवरण नही होता है इसीलिए इसे अनावृतबीजी कहा जाता है।
यानि की यह बीजाण्ड नग्न होता है इस बीजाण्ड के अन्दर दो अध्यावरण होते है और इसके अन्दर एक ऊतक होता है जिसे बीजाण्ड काय कहा जाता है और इस बीजांड काय में बड़ी सी कोशिका थी जिसे गुरुबीजाणुमातृकोशिका कहा जाता है।
इस कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन होता है और चार गुरुबीजाणु बनते है जिनमे से तीन नष्ट हो जाते है और एक गुरुबीजाणु बचता है जो अगुणित होता है यह गुरुबीजाणु लगातार विभाजन करके गुरुबीजाणु कोशिकाओ का एक समूह बनाती है जिसे भ्रूणपोष (Embryosac) कहते है।
यह भी अगुणित होती है इन्ही कोशिकाओ में से एक या एक से अधिक भी कोशिकाए हो सकती है जिनका आकार अन्य कोशिकाओ से थोडा सा बड़ा होता है जिसे अंड कोशिका कहते है। यह अंड कोशिका भ्रूणपोष के अन्दर होती है। इसलिए भ्रूणपोष को मादा युग्मकोदभिद कहते है।
अब इसमें हवा के द्वारा परागकण आता है उसके बाद पराग नलिका बनती है जिससे एक नर युग्मक जाता है और एक बार निषेचन होता है और युग्मनज बन जाता है।
आवृतबीजी के लक्षण (Characters of Angiosperm) –
इनमे भी मुख्य पादप शरीर बीजाणुदभिद होते है
इनके बीज के ऊपर आवरण होते है इसलिए इन्हें आवृतबीजी कहते है। आवृत का मतलब आवरण होता है। ये पुष्पीय होते है।
आवृतबीजी का जीवन चक्र –
ये पुष्पीय होते है और इनके पुष्प की संरचना की बात करे तो ये पुष्प, पुष्पाशन पर होते है जो चार भागो से मिलकर बने होते है।
जायांग (Gynoecium) – यह स्त्रीकेसर/ अंडप (Pistil/ Carpel) से बना होता है और स्त्रीकेसर तीन चीजो से मिलकर बना होता है। वर्तिकाग्र, वर्तिका और अंडाशय।
पुमंग (Androecium) – यह पुंकेसर (Stamen) से बना होता है और पुंकेसर दो चीजो से मिलकर बना होता है। परागकोष और तंतु। इस पुंकेसर को लघुबीजाणु पर्ण भी कहते है क्योकि पुंकेसर लघुबीजाणु पर्ण का रूपांतरण रूप है और इस पुंकेसर में चार लघुबीजाणुधानी होती है।
और प्रत्येक लघुबीजाणुधानी के अन्दर लघुबीजाणु मातृकोशिका होती है और इनमे अर्धसूत्री विभाजन होता है जिससे लघुबीजाणु चतुष्क बनता है और इस चतुष्क पर कैलोज का आवरण होता है। इसके अन्दर जो लघु बीजाणु होता है वह मुक्त होकर अन्दर ही अन्दर विभाजन करके परागकण का निर्माण करते है जिसमे दो जनन कोशिका और एक कायिक कोशिका होती है जिनमे से दो जनन कोशिका को नर युग्मक कहते है या होता है और इस तीन कोशिकीय संरचना को नर युग्मकोदभिद कहा जाता है।
बाह्यदलपुंज (Calyx) – यह बाह्यदल (Sepal) से बना होता है।
दलपुंज (Corolla) – यह दल (Petal) से बना होता है।
इन चारो संरचनाओ को मिलाकर पुष्पपत्र कहते है।
इसमें गुरुबीजाणु पर्ण स्त्रीकेसर में रूपांतरण हो जाता है और इस स्त्रीकेसर के अन्दर बीजाणुधानी होता है जिसे बीजाण्ड कहते है और यही बीजाण्ड आगे चल कर बीज बनाता है। यह एक आवरण से ढका होता है इसीलिए इसे आवृतबीजी कहा जाता है।
इस बीजाण्ड के अन्दर दो अध्यावरण होते है और इसके अन्दर एक ऊतक होता है जिसे बीजाण्ड काय कहा जाता है और इस बीजांड काय में बड़ी सी कोशिका थी जिसे गुरुबीजाणु मातृकोशिका कहा जाता है। इस कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन होता है और चार गुरुबीजाणु बनते है जिनमे से तीन नष्ट हो जाते है और एक गुरुबीजाणु बचता है जो अगुणित होता है।
अब इसके अन्दर जो अगुणित केन्द्रक होता है वह विभाजन करके 2 से 4 से 8 केन्द्रक बनाता है जिनमे से दो केन्द्रक एक साथ बीच में आ जाते है और इन केन्द्रको पर कोशिका भित्ति का आवरण चढ़ जाता है अब आठ केन्द्रक सात कोशिका बन जाती है इस पूरी संरचना को भ्रूणपोष (Embryosac) कहा जाता है।
इस में अंड या मादा युग्मक होता है इसलिए इसे मादा युग्मकोदभिद भी कहते है इसके बाद नर युग्मक या परागकण आता है अंकुरित होता है उसके बाद पराग नलिका बनती है और इस पराग नलिका दो नर युग्मक अन्दर आता है। जिनमे से एक नर युग्मक अंड के साथ संलयन करता है जिससे युग्मनज बनता है।
और दूसरा नर युग्मक बीच में जो दो केन्द्रक साथ में होते है जिसे प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक कहा जाता है। उससे संलयन करके त्रिगुणित कोशिका बनती जिसे प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका कहते है। यह भ्रूणपोष युग्मनज को पोषण देता है। इसके बाद मुख्य पादप शरीर बन जाता है।
नीचे कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर दिए गये है।
पादप जगत का उभयचर किसे कहा जाता है?
ब्रायोफाईट को कहा जाता है
पादप जगत को कितने वर्गों में बांटा गया है?
पादप जगत को वैज्ञानिक आईक्लर ने दो भागो में बाँटा है।
- क्रिप्टोगेमस
- फिनेरोगेमस
पादप जगत का सरीसृप किसे कहा जाता है?
टेरिडोफाईट को पादप जगत का सरीसृप कहा जाता है। क्यों कहा जाता है क्योकि विकास की उत्पत्ति के आधार पर सबसे पहले मछलीय → उभयचर → सरीसृप आये है। तो ये उभयचर के बाद आये है इसलिए इन्हें सरीसृप कहा जाता है न कि ये रेंगने वाले जीव है।
आशा करता हूँ दोस्तों आपको पादप जगत या वनस्पति जगत के बारे में दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी अगर पसंद आयी है तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिये।
धन्यवाद