नमस्कार दोस्तों Inclusive Science.in में आपका स्वागत है दोस्तों आज हम इस पोस्ट में बात करने वाले है, पारिस्थितिकी की परिभाषा, और इससे सम्बंधित सभी जानकारियों के बारे में, तो चलिए शुरू करते है।
पारिस्थितिकी क्या है? (What is Ecology in Hindi?)
पारिस्थितिकी शब्द का प्रयोग सबसे पहले बैज्ञानिक रिटर ने 1868 में किया था पारिस्थितिकी शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों Oikos + logos से मिलकर बना है Oikos का अर्थ घर या रहने का स्थान होता है और logos का अर्थ अध्ययन होता है।
What is meaning of ecology in Hindi?
Ecology का हिंदी में अर्थ पारिस्थितिकी होता है।
पारिस्थितिकी की परिभाषा (Diffinition of Ecology in Hindi) –
बैज्ञानिक ओडम के अनुसार –
“Ecology प्रकृति की संरचना (Structure) और कार्यो का अध्ययन है”।
बैज्ञानिक Earnst Haeekel के अनुसार –
जीव और उसके वातावरण के आपसी सम्बन्ध के अध्ययन को इकोलॉजी या पारिस्थितिकी कहते है।
पारिस्थितिकी का डिविजन –
बैज्ञानिक थ्रोटर ने 1896 ई० में पारिस्थितिकी को दो भागो में बाँटा था।
- स्वपारिस्थितिकी (Autecology in Hindi)
- संपारिस्थितिकी (Synecology in Hindi)
सबसे पहले हम स्वपारिस्थितिकी (Autecology in Hindi) के बारे में जान लेते है उसके बाद संपारिस्थितिकी (Synecology in Hindi) के बारे में पढ़ेंगे।
1. स्वपारिस्थितिकी (Autecology in Hindi) –
जब किसी एक ही जंतु या एक ही जाति के सभी मेम्बरों का अध्ययन उनके वातावरण के साथ किया जाता है, तो इसे स्वपारिस्थितिकी (Autecology in Hindi) कहा जाता है। इसके अंतर्गत जीव जैविक क्रियाओ, उसका वितरण, जैविक और अजैविक कारको के साथ सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है।
2. संपारिस्थितिकी (Synecology in Hindi) –
इसमें किसी क्षेत्र के पूरे जैविक समुदाय का अध्ययन किया जाता है। जैविक समुदाय के अंतर्गत सभी जंतु और पौधे आते है। इसलिए संपारिस्थितिकी का क्षेत्र विस्तृत है इसमें प्राणी और पौधों के आपसी संबंधो का अध्ययन भी किया जाता है।
पारिस्थितिकी कितने प्रकार के होते है? (How many types of Ecology in Hindi?) –
पारिस्थितिकी कई प्रकार के होते है जिनके बारे में नीचे लिखा गया है।
- स्थलीय पारिस्थितिकी (Terrestrial Ecology in Hindi) –
इस पारिस्थितिकी के अंतर्गत स्थल पर पाए जाने वाले जंतु और वनस्पतियों का अध्ययन उनके वातावरण के साथ करते है, तो इस अध्ययन को स्थलीय पारिस्थितिकी कहते है।
2. समुद्री पारिस्थितिकी (Marine Ecology in Hindi) –
इस इकोलॉजी के अंतर्गत समुद्र की वनस्पति और प्राणियों का अध्ययन उनके वातावरण के साथ करते है तो इसे समुद्री पारिस्थितिकी कहते है।
3. स्वच्छ जलीय पारिस्थितिकी (Fresh Water ecology in hindi) –
पहले हम जान लेते है कि स्वच्छ जल होता क्या है। जिस जल में लवण घुले नही होते है उसे स्वच्छ जल कहते है। चलो अब जान लेते है स्वच्छ जल के स्रोत कौन – कौन से है नदी, झील, तालाब, पोखर, और जल धारा आदि स्वच्छ जल के स्रोत है। इन स्रोतों के वनस्पति और जीवों का अध्ययन इनके वातावरण के साथ किया जाता है। तो इसे स्वच्छ जलीय पारिस्थितिकी कहा जाता है।
4. बेलासंगम पारिस्थितिकी (Esturine ecology in HIndi) –
आप जानते होंगे कि जो नदियाँ है। वह जा करके समुद्र में गिरती है और नदी का जल स्वच्छ होता है। जबकि समुद्र का जल खारा या लवणी होता है। अब जहाँ नदी समुद्र में गिरती है। वहाँ नदी और समुद्र के जल का मिश्रण बन जाता है इसी मिश्रित जल को बेलासंगम जल कहते है। इसी जल की वनस्पति और प्राणियो का इनके वातावरण के साथ में अध्ययन बेलासंगम पारिस्थितिकी कहलाता है।
5. आवासीय पारिस्थितिकी (Habitat ecology in Hindi) –
वह स्थान जहाँ पर कोई जीव रहता है उसे उसका आवास कहते है। प्रत्येक आवास की विशेष भौगोलिक अवस्थाये होती है। आवास की वनस्पति औत इसके प्राणी इसकी भौगोलिक अवस्थाओ के अनुसार ही होते है। विभिन्न आवासों का अध्ययन आवासीय पारिस्थितिकी कहलाता है।
6. प्रदूषण पारिस्थितिकी (Pollution ecology in hindi) –
प्रदूषण आज की महत्वपूर्ण समस्या है। वनस्पति और प्राणियों पर विभिन्न प्रदूषण के प्रभावों का अध्ययन प्रदूषण पारिस्थितिकी कहलाता है।
7. मानव पारिस्थितिकी (Human ecology in hindi) –
आप लोग जानते ही होंगे कि मानव अपने पारिस्थितिकी तंत्र का सबसे विकसित प्राणी है। मानव द्वारा किये गए काम या क्रिया कलाप पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते है। वह अध्ययन जो मानव क्रियाकलापों के प्रभाव से सम्बंधित है, मानव पारिस्थितिकी कहलाता है।
8. रासायनिक पारिस्थितिकी (Chemical ecology in hindi) – विभिन्न रसायन आज जीवन का एक हिस्सा बन गये है, जीवन पर पड़ने वाले रासायनिक प्रभाव का अध्ययन रासायनिक पारिस्थितिकी कहलाता है।
9. मृदा पारिस्थितिकी (Pedo-ecology in Hindi) –
शायद आपको पता ही होगा कि मृदा का अर्थ मिट्टी होता हैमृदा केवल पौधों के लिए ही नहीं बल्कि अनेकों जन्तुओ को भी आश्रय प्रदान करती है। ह्यूमस पोषक तत्व जल धारिता क्षमता, अम्लीयता और मिट्टी क्षारीयता पौधों व जंतु दोनों को प्रभावित करते है। वनस्पति व प्राणियो के साथ में मृदा का अध्ययन मृदा पारिस्थितिकी कहलाता है।
10. जीवाश्मी पारिस्थितिकी (Palaeo-ecology in hindi) –
प्राचीन समय के अनेको जीव आज जीवित नही है लेकिन इनके अवशेष विभिन्न रूपों में मिलते रहते है जीवों के इन अवशेषों को जीवाश्म कहते है। इन जीवाश्मो का अध्ययन इनके समय के वातावरण के सन्दर्भ में करना जीवाश्मी पारिस्थितिकी कहलाता है।
11. विकिरण पारिस्थितिकी (Radiation Ecology in Hindi) –
रेडिएशन आज की मुख्य समस्या है। जीवन पर पड़ने वाले विभिन्न किरणों के प्रभाव को विकिरण कहते है। दिन प्रतिदिन रेडिएशन के स्रोत बढ़ते जा रहे है। रेडिएशन का वनस्पति और प्राणियो पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन विकिरण पारिस्थितिकी कहलाता है।
पारिस्थितिकी तंत्र क्या है? (What is Ecosystem in Hindi)
वातावरण में जैविक और अजैविक घटकों का आपसी सम्बन्ध और इनके कार्यो को पारिस्थितिकी तंत्र कह्ते है। पारिस्थितिकी तंत्र शब्द का प्रयोग A. G. Tansely ने 1935 ई० में किया मोबियस ने इकोसिस्टम के स्थान पर बायोसिनेसिस शब्द का प्रयोग किया। फोरबिसिस ने इसके लिए माइक्रोकोस्म शब्द का प्रयोग किया रुसी बैज्ञानिक सुकाचेव ने जीयोबायोसिनेसिस शब्द का प्रयोग किया।
बैज्ञानिक ओडम के अनुसार इकोसिस्टम की परिभाषा –
किसी क्षेत्र में जंतु और वनस्पति का आपसी सम्बन्ध और किस प्रकार ये अपने वातावरण का प्रयोग करते है। इसका अध्ययन पारिस्थितिकी तंत्र कहलाता है। पारिस्थितिकी तंत्र एक छोटे से मैदान से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक का हो सकता है।
पारिस्थितिकी तंत्र के घटक (Components of Ecosystem in Hindi) –
प्रत्येक इकोसिस्टम 2 कंपोनेंट्स का बना होता है।
- जैविक घटक (Biotic Components)
- अजैविक घटक (Abiotic Components)
सबसे पहले हम जैविक घटक और इसके श्रेणियों के बारे में अध्ययन करेंगे।
1. जैविक घटक (Biotic Components in Hindi) –
इकोसिस्टम के वे घटक जिनमे जीवन या जान होता है और जिन्हें उनके पोषण के आधार पर पहचाना जा सकता है उन्हें जैविक घटक कहते है जैविक घटकों की निम्न श्रेणिया है।
उत्पादक (Produceers) –
ये पारिस्थितिकी तंत्र के स्वपोषी घटक है और ये हरे पौधों के रूप में पाए जाते है ये ही नहीं प्रकाश संश्लेषी जीवाणु भी उत्पादक के श्रेणी में आते है। पारिस्थितिकी तंत्र में उत्पादक ही सभी सदस्यों के लिए भोजन बनाते है। वह क्रिया जिसके द्वारा उत्पादक भोजन बनाते है। उसे प्रकाश संश्लेषण कहते है।
प्रकाश संश्लेषण में हरे पौधे सूर्य की ऊर्जा को भोजन में बदलते है। पारिस्थितिकी तंत्र के सभी घटक भोजन के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्पादक पर ही निर्भर करते है। प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र उत्पादको से ही शुरू होता है।
उपभोक्ता (Consumers) –
पारिस्थितिकी तंत्र के वे घटक जो अपना भोजन खुद नहीं बना सकते और उत्पादको पर निर्भर करते है वे उपभोक्ता या विषमपोषी कहलाते है। उपभोक्ता को तीन श्रेणियों में बाटा गया है।
प्राथमिक उपभोक्ता (Primary consumers) –
वे उपभोक्ता जो भोजन के लिए सीधे ही उत्पादको पर निर्भर करते है उन्हें प्राथमिक उपभोक्ता कहते है। ये पूर्णरूप से शाकाहारी होते है जैसे – गाय, भैंस, बकरी, भेड़, खरगोश, टिड्डा, हाथी आदि।
द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers) –
ये वे उपभोक्ता होते है जो अपना भोजन प्राथमिक उपभोक्ता से प्राप्त करते है ऐसे उपभोक्ता को द्वितीयक उपभोक्ता कहते है। जैसे – बिल्ली, कुत्ता, साँप, छिपकली और मेंढ़क आदि द्वितीयक उपभोक्ता है।
तृतीयक उपभोक्ता या उच्च उपभोक्ता (Tertiary or Top Consumers) –
वे उपभोक्ता जो अपना भोजन प्राथमिक या द्वितीयक उपभोक्ता से प्राप्त करते है वे तृतीयक या उच्च उपभोक्ता कहलाते है। इन उपभोक्ताओ में पोषण का उच्च स्तर पाया जाता है अपने पारिस्थितिकी तंत्र में इन उपभोक्ताओ का कोई प्राकृतिक शत्रु नहीं होता है। जैसे – चीता, शेर, गिद्ध, चील, बाज और नेवला आदि अपने पारिस्थितिकी तंत्र के उच्च उपभोक्ता है। ये पूर्णरूप से मांसाहारी होते है।
कुछ उपभोक्ता दो प्रकार से पोषण प्राप्त करते है। ये शाकाहारी और मांसाहारी दोनों होते है ऐसे उपभोक्ताओ को सर्वाहारी कहा जाता है। जैसे – बिल्ली, कुत्ता, कुछ पक्षी, कॉकरोच तथा कुछ मछली आदि प्राथमिक उपभोक्ता से लेकर उच्च उपभोक्ता तक सभी जंतु मैक्रोकन्जूमर कहलाते है।
हमने उपभोक्ता के बारे में भी अच्छी तरह से अध्ययन कर लिया है। अब आगे हम लोग अपघटक के बारे में जानेंगे तो चलिए शुरू करते है।
अपघटक (Decomposers) –
अपघटकों को सूक्ष्म उपभोक्ता भी कहते है ये पारिस्थितिकी तंत्र के वे घटक है जो मरे हुए जीवों के शरीर के जटिल अणुओं को अकार्बनिक मुक्त तत्वों में बदल देते है। ये घटक पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न जैव भूरासायनिक चक्रों को नियंत्रित करने में सहायता करते है। जीवाणु, कवक मुख्य अपघटक है।
2. अजैविक घटक किसे कहते है? (What is Abiotic Components in Hindi?)
पारिस्थितिकी तंत्र के निर्जीव घटकों को अजैविक घटक कहते है। अजैविक घटक जैविक घटकों के जीवन का आधार है। जैविक घटकों का जीवन अजैविक घटकों पर ही निर्भर करता है। अजैविक घटकों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है।
- अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic Substances) –
अकार्बनिक पदार्थ विभिन्न अकार्बनिक तत्व होते है। जैसे – कार्बन हाइड्रोजन, सल्फ़र, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और फास्फोरस आदि। ये तत्व कार्बनिक पदार्थो के संश्लेषण के लिए आवश्यक है। अकार्बनिक पदार्थ शरीर की कार्यिकी और अकर्यिकी क्रियाओ में भाग लेते है। विभिन्न जैव – भूरासायानिक चक्रों द्वारा प्रकृति में अकार्बनिक पदार्थो की मात्रा लगभग स्थिर बनी रहती है। अकार्बनिक पदार्थ प्रकृति में सदैव गतिशील अवस्था में बने रहते है।
2. कार्बनिक पदार्थ (Organic substances in Hindi) –
कार्बनिक पदार्थ विभिन्न रूप में पाए जाते है। कुछ कार्बनिक पदार्थ प्रकृति में मुक्त अवस्था में पाए जाते है। जैसे – कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड और ह्यूमस आदि ये पदार्थ जैविक तथा अजैविक दोनों घटकों से जुड़े होते है। कुछ कार्बनिक पदार्थ केवल जीवित कोशिका में ही पाए जाते है। जैसे ATP, DNA तथा क्लोरोफिल आदि।
3. भौतिक घटक (Physical components in Hindi) –
भौतिक घटक को वातावरणीय कारक भी कहते है और ये वातावरण बनाते है जैसे प्रकाश, तापमान, मृदा, जल, वायु तथा आर्द्रता आदि। ये घटक जीवों की शारीरिक क्रियाओ को प्रभावित करते है। इन घटकों से जीवों का वितरण भी प्रभावित होता है।
दोस्तों आशा करता हूँ कि आपको पारिस्थितिकी की परिभाषा के बारे में दी गई जानकारी पसंद आई होगी। यदि यह जानकारी आपको पसंद आई है तो प्लीज इसे अधिक से अधिक शेयर कीजिये।
धन्यवाद
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