नमस्कार दोस्तों, क्या आप संघ कॉर्डेटा के बारे में कम्प्लीटली जानना चाहते है यदि हाँ तो यह आर्टिकल आप ही के लिए है। इस आर्टिकल में आपको संघ कॉर्डेटा (Phylum chordata in hindi) के बारे में स्टेप बाई स्टेप पूरी जानकारी दी गयी है तो चलिए बिना समय बर्बाद किये पढ़ना शुरू करते है।
संघ कॉर्डेटा (Phylum Chordata in hindi)–
सामान्य लक्षण –
- इन प्राणियों में चार मूलभूत लक्ष्ण पाए जाते है – पृष्ठरज्जु (Notochord), पृष्ठ खोखली तंत्रिका रज्जु (Dorsal Hollow Nerve Cord), युग्मित ग्रसनी क्लोम छिद्र (Pharyngeal slits) और पश्च गुदा (Post-anal tail) पूँछ।
- ये द्विपार्श्व सममिति, त्रिकोरिक, प्रगुहा तथा अंग तंत्र स्तर का संगठन दर्शाते है।
- इनमे गुदा के पश्चात् पूँछ पायी जाती है।
- इनमे बंद परिसंचरण पाया जाता है।
अरज्जुकी और रज्जुकी में क्या अंतर है?
(What is the difference between Non-chordates and chordates?)
रज्जुकी (Chordates) | अरज्जुकी (Non-chordates) |
इनमे पृष्ठरज्जु पाया होता है। | इनमे पृष्ठरज्जु नही होता है। |
इनमे केन्द्रिकीय तंत्रिका तंत्र, पृष्ठीय एवं खोखला तथा एकल होता है। | केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र अधरतल में ठोस एवं दोहरी होती है। |
इनके ग्रसनी में क्लोम छिद्र पाए जाते है। | क्लोम छिद्र नही पाए जाते है। |
इनमे ह्रदय अधर भाग में होता है। | इनमे ह्रदय पृष्ठ भाग में होता है। (अगर होता है तो) |
इनमे एक गुदा के बाद पुच्छ उपस्थित होती है। | इनमे गुदा के बाद पुच्छ नही होती है। |
संघ कॉर्डेटा का वर्गीकरण (Classification of Phylum Chordata in hindi)
संघ कॉर्डेटा को तीन उपसंघो में बांटा गया है।
- यूरोकॉर्डेटा (Urochordata)
- सेफैलोकॉर्डेटा (Cephalochordata)
- वर्टिब्रेटा/Vertebrata (कशेरुकी)
यूरोकॉर्डेटा और सेफैलोकॉर्डेटा ये प्राचीनतम कोर्डेट है इसलिए इन्हें प्रोटोकॉर्डेटा (Protochodata) कहा जाता है, और वर्टिब्रेटा को यूकॉर्डेटा (Eurochardata) या आधुनिक कॉर्डेटा (Modern Chordata) कहा जाता है।
सभी कशेरुकी कॉर्डेट है लेकिन सभी कोर्डेट, कशेरुकी नही है।
उपसंघ यूरोकॉर्डेटा (Subphylum Urochordata) –
इसमें पृष्ठरज्जू केवल लार्वा की पूँछ में पायी जाती है।
उदाहरण – एसिडिया, सैल्पा, डोलिओलम।
उपसंघ सेफैलोकॉर्डेटा (Subphylum Cephalochordata) –
इनमे पृष्ठरज्जु सिर से लेकर पूँछ तक फैली रहती है जो जीवन के अंत तक बनी रहती है।
उदाहरण – ब्रेंकिओस्टोमा (Amphioxsus)।
उपसंघ वर्टिब्रेटा (कशेरुकी) (Subphylum Vertebrata) –
कशेरुकी किसे कहते है?
वे प्राणी जिनमे मेरुदंड या कशेरुकदंड (Vertebral column) या रीढ़ की हड्डी पायी जाती है उन्हें उन्हें कशेरुकी जंतु कहते है।
मेरुदण्ड क्या होता है?
कशेरुकियो में डंडे के समान हड्डियों का एक संरचना होता है जिसे मेरुदंड कहा जाता है और इस मेरुदंड के अन्दर से तंत्रिकाओ का गुच्छा ऊपर से नीचे की तरफ आता है जिसे मेरुरज्जु (Spinal cord) कहा जाता है।
सामान्य लक्षण –
- कशेरुकियों में पृष्ठरज्जु भ्रूणीय अवस्था में पायी जाती है और यह पृष्ठरज्जु वयस्क अवस्था में मेरुदंड में परिवर्तित हो जाती है।
- सभी कशेरुकी रज्जुकी है लेकिन सभी रज्जुकी कशेरुकी नही है।
- इनमे पेशीय ह्रदय अधर भाग में पाया जाता है जो दो, तीन और चार कोष्ठ्कीय होता है।
- इनमे वृक्क (kidney) पाया जाता है जो उत्सर्जन में सहायता करता है।
- इनमे पंख (Fins) या पाद के रूप में दो जोड़ी युग्मित उपांग पाए जाते है।
उपसंघ – वर्टिब्रेटा को दो भागो में बांटा गया है।
1- अनैथोस्टोमेटा (Agnathostomata)-
ऐसे रीढ़ की हड्डियों वाले प्राणी जिनके मुख में जबड़े नही होते है उन्हें अनैथोस्टोमेटा कहा जाता है, और ऐसे प्राणियों जबड़े न होने के कारण इनका मुख गोल होता है। इसका वर्ग साइक्लोस्टोमेटा है।
2- नैथोस्टोमेटा (Gnathostomata) –
ऐसे रीढ़ की हड्डियों वाले प्राणी जिनके मुख में जबड़े होते है उन्हें नैथोस्टोमेटा कहा जाता है। ये दो प्रकार के होते है।
- पिसीज
- टेट्रापोडा
पिसीज – ऐसे नैथोस्टोमेटा प्राणी जिनमे पंख पाये जाते है उन्हें पीसीज में रखा गया है। इसमें मछलियों को रखा गया है। इसके दो वर्ग है।
- कान्ड्रीक्थीज – ये वे प्राणी है जिनका अन्तः कंकाल उपस्थियों से बना होता है।
- ओस्टिक्थीज – ये वे प्राणी है जिनका अन्तः कंकाल हड्डियों से बना होता है।
टेट्रापोडा – ऐसे नैथोस्टोमेटा प्राणी जिनमे पाद या उपांग (अग्र्पाद और पश्च पाद) पाए जाते है। इसके चार वर्गो में बांटा गया है।
- एम्फिबिया (उभयचर)
- रेप्टिलिया (सरीसृप)
- एवीज
- मैमेलिया (स्तनधारी वर्ग)
वर्ग साइक्लोस्टोमेटा (Class Cyclostomata)-
सामान्य लक्षण –
- इस वर्ग के सभी प्राणी कुछ मछलियों के बाह्य परजीवी होते है।
- इनमे श्वसन के लिए 6-15 जोड़ी क्लोम छिद्र पाए जाते है।
- इनमे बिना जबड़े का चूषक और वृत्ताकार मुख मिलता है।
- इनमे शल्क और यूग्मित पंख नहीं पाए जाते है।
- इनका कपाल और मेरुदंड उपास्थि से बना होता है।
- इनका परिसंचरण तंत्र बंद प्रकार का होता है।
- ये सनुद्र में मिलते है किन्तु जनन के लिए साफ़ जल में जाते है और जनन के बाद वे मर जाते है और लार्वा कायांतरण (मेटामारफ़ोसिस) के बाद समुद्र में लौट जाते है।
- उदाहरण – पेट्रोमाइजॉन (लैम्प्रे) और मिक्सीन (हैग फिश)।
वर्ग कान्ड्रीक्थीज (Class Chondrichthyes) –
सामान्य लक्षण –
- ये समुद्री प्राणी है जो सभी के सभी मछलियाँ है जिनका अन्तः कंकाल उपस्थियों का बना होता है।
- इनका मुख अधर पर स्थित होता है।
- इनमे मेरुदंड पूरे जीवन भर पायी जाती है।
- इनमे क्लोम छिद्र प्रच्छद से ढके नहीं होते है। प्रच्छद का मतलब, क्लोम छिद्र के ऊपर मिलने वाली झिल्ली को प्रच्छद कहते है। जो इसमें नही मिलती है।
- इनके त्वचा दृढ़ होती है और पट्टाभ शल्कयुक्त होती है एवं इनके दन्त इन्ही पट्टाभ शल्क या त्रिसूल के समान शल्क के रूपांतरण से बनते है जो पीछे की ओर मुड़े होते है।
- इनके जबड़े बहुत मजबूत होते है।
- इनमे वायु कोष नही पाए जाते है इस कारण डूबने से बचने के लिए इन्हें लगातार तैरना पड़ता है।
- इनमे ह्रदय दो कोष्ठक से बना होता है जिसमे एक अलिंद और दूसरा निलय होता है।
- ये सभी असमतापी (Stenothermal) होते है जिनमे शरीर का ताप नियंत्रित करने की क्षमता नही होती है।
- ये एक लिंगी होते तथा नर में श्रोणि पंख में आलिंगक (क्लेस्पर) पाए जाते है जो जनन में सहायता करते है।
- इनमे निषेचन आंतरिक होता है तथा सभी जरायुज होते है। यानि की बच्चो को जन्म देते है।
- उदाहरण – स्कारलियोडोन (कुत्ता मछली), प्रीस्टिस (आरा मछली) कारकेरोडोन (विशाल सफ़ेद शार्क) ट्राइगोन (व्हेल शार्क)।
- इस वर्ग के कुछ प्राणियों में विद्दुत अंग होते है। जैसे – टारपीडो और कुछ में विष दंश पाए जाते है। जैसे – ट्रॉयगोन।
वर्ग ओस्टिक्थीज (Class Osteichthyes) –
सामान्य लक्षण –
- ये प्राणी लवणीय तथा अलवणीय दोनों प्रकार के जल में पाए जाते है। ये भी सभी मछलियाँ है, जिनका अन्तः कंकाल अस्थिल होता है।
- इनका मुख अग्र सिरे पर स्थित होता है।
- इनमे चार जोड़ी क्लोम छिद्र पाए जाते है। जो प्रच्छद से ढके होते है।
- इनकी त्वचा साइक्लोइड शल्क (गोलाकार शल्क) से ढकी होती है।
- इनमे वायु कोष पाए जाते है जो उत्प्लावन (तैरने) में सहायता करते है।
- इनका ह्रदय दो कोष्ठको से बना होता है जिसमे एक अलिंद तथा दूसरा निलय होता है।
- ये सभी असमतापी होते है मतलब जिनमे शरीर का तापमान नियंत्रित करने की क्षमता नही होती है।
- ये एक लिंगी होते है और निषेचन बाहर होता है तथा ज्यदातर अंडज होते है।
- उदाहरण – समुद्री – एक्सोसिटस (उड़न मछली) हिपोकेम्पस (समुद्री घोडा)। अलवणीय – लेबियो (रोहू), क़तला, कलेरियस (मांगुर), एक्वोरियम बेटा (फाइटिंग फिश), पेट्रोप्इसम (एंगज मछली)।
वर्ग एम्फिबिया (Class Amphibia) –
सामान्य लक्षण –
- ये प्राणी स्थल और जल दोनों में पाए जाते है।
- इनका शरीर सिर और धड़ में विभाजित होता है और इनमे दो जोड़ी पैर पाए जाते है।
- इनमे से कुछ प्राणियों में पूँछ उपस्थित होती है।
- इनकी त्वचा नम होती है और नेत्र पलक वाले होते है।
- इनमे कर्ण की जगह कर्णपटल होता है।
- इनमे आहार नाल, मूत्राशय तथा जनन पथ का एक कोष्ठ पाया जाता है जिसे अवस्कर (क्लोका) कहते है।
- इनमे श्वसन क्लोम, फुफ्फुस तथा त्वचा के द्वारा होता है।
- इनमे ह्रदय तीन कोष्ठक का होता है।
- ये असमतापी, एक लिंगी होते है तथा निषेचन बाहर होता है।
- उदाहरण – बूफो (टोड), राना टिग्रिना (मेढक), हायला ( वृक्ष मेढक) सैलेमेन्ड्रा (सैलेमेडर), एक्थियोफिस (पादरहित उभयचर)।
वर्ग सरीसर्प (Class Reptile) –
सामान्य लक्षण –
- ये प्राणी सरकने और रेंगने के द्वारा गमन करते है।
- ये स्थलीय और जलीय दोनों होते है जिनके शरीर पर शुष्क शल्क पाए जाते है जो किरेटिन नामक प्रोटीन से बने होते है। इस वजह से बहुत कठोर होते है।
- इनमें भी कर्णपटल पाए जाते है।
- इनमे दो जोड़ी पाद पाए जा सकते है।
- इनका ह्रदय तीन कोष्ठक में होता है किन्तु मगरमच्छ में चार कोष्ठक होता है।
- ये असमतापी होते है, सर्प तथा छिपकली अपनी शल्क को त्वचीय केंचुल के द्वारा छोड़ते है।
- ये एकलिंगी होते है और निषेचन आंतरिक होता है। ये सब अंडे होते है।
- उदाहरण – किलोन (टर्टल), तेस्ट्युडो (टोरटोइज), केमलियान (वृक्ष छिपकली), केलोटस (बगीचे की छिपकली) ऐलीगेटर), क्रोकोडाइलस (घड़ियाल), हेमीडेक्टायलस (घरेलु छिपकली) जहरीले सर्प – नाजा (कोबरा), वगैरस (क्रेत), वाइपर।
वर्ग एवीज (Class Aves) –
सामान्य लक्षण –
- एवीज का मुख्य लक्षण शरीर के ऊपर पंखो की उपस्थिति तथा उड़ने की क्षमता है ( कुछ नही उड़ने वाले पक्षी जैसे – ऑस्ट्रिच/शुतुरमुर्ग को छोड़कर)।
- इनमे चोंच पायी जाती है।
- अग्र्पाद रूपांतरित होकर पंख बनाते है।
- पश्चपाद में सामान्यतः शल्क होते है जो रूपांतरित होकर चलने, तैरने तथा पेड़ो की शाखाओ को पकड़ने में सहायता करते है।
- इनकी त्वचा शुष्क होती है, पूँछ में तेल ग्रंथि को छोड़कर कोई और त्वचा ग्रंथि नही पाई जाती है।
- अन्तः कंकाल की लम्बी अस्थियाँ खोखली होती है तथा वायुकोष युक्त होती है।
- इनके पाचन पथ में सहायक संरचना क्रॉप और पेषणी होती है।
- इनका ह्रदय पूर्ण चार प्रकोष्ठ का बना होता है।
- यह समतापी (होमियोथर्मस) होते है अर्थात् इनके शरीर का ताप नियत बना रहता है।
- इनमे श्वसन फुफ्फुस के द्वारा होता है।
- उदाहरण – कार्वस (कौआ), कोलुम्बा (कपोत) सिटिकुला (तोता), स्ट्रियिओ (ऑस्ट्रिच), पैवो (मोर), एटीनोडायटीज (पेग्विन), सूडोगायपस (गिद्ध)।
वर्ग मैमेलिया (Class Mammalia) –
सामान्य लक्षण –
- इस वर्ग के प्राणी सभी प्रकार के वातावरण में पाए जाते है जैसे ध्रुवीय ठंडे भाग, रेगिस्तान, जंगल, घास के मैदान तथा अँधेरी गुफाओ में।
- स्तनधारियो का सबसे मुख्य लक्ष्ण दूध उत्पन्न करने वाली ग्रंथि (स्तन ग्रंथि) है जिनसे बच्चे पोषण प्राप्त करते है।
- इनमे दो जोड़ी पाद मिलते है जो चलने – दौड़ने, वृक्ष पर चढ़ने के लिए, अनुकूलित होते है।
- इनकी त्वचा पर रोम पाए जाते है।
- इनमे से कुछ में उड़ने तथा पानी में रहने का अनुकूलन होता है।
- इनमे बाह्य कर्णपल्लव पाए जाते है।
- जबड़े में विभिन्न प्रकार के दांत जो मसूड़ो की गर्तिका में लगे होते है।
- ह्रदय चार प्रकोष्ठ का होता है। दो अलिंद और दो निलय होता है।
- श्वसन की क्रिया पेशीय डायफ्राम के द्वारा खुली होती है।
- लिंग अलग होते है और निषेचन आन्तरिक होता है।
- कुछ को छोड़कर सभी स्तनधारी बच्चे को जन्म देते है (जरायुज) तथा विकास प्रत्यक्ष होता है। Platypus और Echidna अंडज होते है।
- उदाहरण – जरायुज – मैक्रोपस (कंगारू), टैरोपस (प्लाइंग फौक्स), केमिलस (ऊँट), मकाका (बन्दर), रेट्स (चूहा), केनिस (कुत्ता), फेसिस (बिल्ली), एलिफस।
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