मानव स्वास्थ्य तथा रोग नोट्स आसान भाषा में

दोस्तों इस लेख में हम NCERT बुक का मानव स्वास्थ्य तथा रोग चैप्टर का अध्ययन करेंगे यदि आप इस चैप्टर को पढ़ना चाहते है तो यह लेख सिर्फ आपके लिए ही है। इस लेख में हम इस चैप्टर का एक एक पॉइंट कवर करेंगे तो चलिए बिना समय बर्बाद किया शुरू करते हैं।

Table of Contents

स्वस्थ की परिभाषा 

वह व्यक्ति जो शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ हो वह स्वस्थ व्यक्ति कहलाता है।

शारीरिक का मतलब जो व्यक्ति शरीर से मजबूत, निरोग हो और मानसिक का मतलब वह दिमाग से फिट हो उसके मस्तिष्क में कोई गड़बड़ी न हो और सामाजिक का मतलब है कि वह अपने समाज में लोगों से बोलता हो बातचीत करता हो उठता हो बैठता हो इत्यादि।

रोग किसे कहते हैं?

जब शरीर का एक या एक से अधिक अंग या ऊतक या तंत्र सही से कार्य नहीं करते हैं और शरीर में विभिन्न लक्षण उत्पन्न होते हैं तो हम ऐसे व्यक्ति को रोगी कहते हैं यानी कि उसे रोग हुआ है।

मानव रोग क्या है?

वे रोग जो सिर्फ मनुष्यों को होते हैं उन्हें मानव रोग कहते है।

मानव रोग कितने प्रकार के होते हैं?

मानव रोग दो प्रकार के होते हैं।

  1. आनुवांशिक रोग (Genetical Disease)
  2. उपार्जित रोग (Acquired Disease)

अनुवांशिक रोग किसे कहते हैं?

वह रोग जो हमें माता-पिता से मिलते हैं आनुवंशिक रोग कहलाते हैं।

उपार्जित रोग क्या है?  

वह रोग जिसे हम जन्म के बाद अर्जित करते हैं उपार्जित रोग कहलाता है। उपार्जित रोग दो प्रकार का होता है।

  1. संक्रामक रोग (Infection disease)
  2. असंक्रामक रोग (Non infection disease)

संक्रामक रोग किसे कहते हैं?

वह रोग जो किसी संपर्क से फैलते हैं उसे संक्रामक रोग कहते हैं। जैसे- जुकाम, एड्स, मलेरिया आदि।

असंक्रामक रोग किसे कहते हैं?

वह रोग जो संपर्क से नहीं फैलते हैं उन्हें असंक्रामक रोग कहा जाता है। जैसे- कैंसर, घेंघा, मोटापा, इत्यादि।

जीवाणु जनित रोग (Bacterial disease)

वे रोग जो जीवाणुओं से होते हैं उन्हें जीवाणु जनित रोग कहा जाता है। दोस्तों जीवाणु से होने वाले बहुत से रोग है लेकिन इसमें हम सिर्फ दो जीवाणु जनित रोग के बारे में अध्ययन करेंगे।

  1. टाइफाइड (Typhoid)
  2. निमोनिया (Pneumonia)

टाइफाइड कैसे होता है? (How to occur Typhoid in hindi)

यह रोग साल्मोनेला टाइफी नामक जीवाणु से होता है। यह जीवाणु दूषित भोजन और पानी के द्वारा हमारे शरीर के छोटी आंत में पहुंचते हैं और वहां से हमारे रक्त में और रक्त के द्वारा हमारे शरीर के दूसरे अंगों में पहुंच जाते हैं और व्यक्ति को बीमार कर देते हैं

Typhoid disease, टाइफाइड
मानव स्वास्थ्य तथा रोग नोट्स

टाइफाइड के लक्षण

इस रोग से हमारे शरीर में तेज बुखार, पेट में दर्द, कब्ज, कमजोरी, सिर में दर्द और भूख का ना लगना इत्यादि समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। इसके साथ-साथ गंभीर केसेस में आंत में छेद हो जाती है जिससे व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती है।

इस रोग यानी कि टाइफाइड बुखार की जांच विडाल टेस्ट से हो जाती है। दोस्तों एक महिला थी जिनका उपनाम टाइफाइड मैरी था क्यों था चलिए जानते हैं। इस महिला का असली नाम मैरी मैलॉन था यह पेशे से एक रसोईया थी और ये जो खाना बनाती थी उस भोजन के द्वारा सालों तक टाइफाइड वाहक के रूप में टाइफाइड रोग को फैलाती रहीं। इसलिए इन्हें टाइफाइड मैरी नाम से पुकारा जाता है। हालांकि इन्हें इस रोग के बारे में पता नहीं था कि इन्हें टाइफाइड बीमारी है और अनजाने में यह रोग को फैलाती रहीं।

निमोनिया कैसे होता है?

निमोनिया स्ट्रैप्टॉकोक्कस निमोनिया और हिमोफिलस इनफ्लूएंजी –

यह रोग स्ट्रेप्टोकोकस न्युमोनी और हीमोफिल्स इन्फ्लूएंजी नामक जीवाणु से होता है। यह जीवाणु हमारे फेफड़ों में वायु कोष्ठ को संक्रमित करते हैं जिससे इन कुपिकाओ के अंदर तरल भरने लगते हैं और सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। क्योंकि गैसों का आदान-प्रदान नहीं हो पाता है।

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निमोनिया के लक्षण

यह रोग होने पर व्यक्ति को बुखार, खांसी, ठिठुरन और सिर दर्द इत्यादि निमोनिया के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। लेकिन समय पर डॉक्टर को नहीं दिखाने पर व्यक्ति के होंठ और उंगलियों के नाखून का रंग नीला होने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गैसों का आदान-प्रदान नहीं हो पाता जिस वजह से रक्त में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और यह कोशिकाओं तक नहीं पहुंच पाता है, लेकिन कोशिकाएं लगातार श्वसन करती रहती है।

जिस वजह से रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक हो जाती है और जब कार्बन डाइऑक्साइड हीमोग्लोबिन से जुड़ती है तो कार्बअमीनो हीमोग्लोबिन बनता है, जिसका रंग नीला होता है इसलिए होंठो और उंगलियों के नाखूनों का रंग नीला हो जाता है।

दोस्तों जब कोई संक्रमित व्यक्ति छींकता है तो उससे जो ड्रॉपलेट्स (पानी की बूंदे) निकलते हैं और इन ड्रॉपलेट्स को जब कोई स्वस्थ व्यक्ति सांस के माध्यम से अपने अंदर ले लेता है या उस संक्रमित व्यक्ति का बर्तन यूज कर लेता है तो वह स्वस्थ व्यक्ति भी संक्रमित हो जाता है। क्योंकि उन ड्रॉपलेट्स में रोगाणु उपस्थित होते हैं या उन बर्तनों में उपस्थित होते हैं, जिससे व्यक्ति संक्रमित या बीमार हो जाता है।

विषाणु जनित रोग

वे रोग जो विषाणुओं से होते हैं उसे विषाणु जनित रोग कहते हैं। यहाँ पर हम सिर्फ एक विषाणु जनित रोग के बारे में अध्ययन करेंगे।

जुकाम (Common cold) –

इसे Rhinitis भी कहा जाता है। यह रोग राइनो वायरस (Rhino virus) से होता है। यह विषाणु हमारे नासा मार्ग यानी की नाक और श्वसन पथ को संक्रमित करता है लेकिन यह हमारे फेफड़ों को संक्रमित नहीं करता है।

एक्चुअली इसमें होता यह है कि यह विषाणु हमारे नाक में एक झिल्ली होती हैं जिसे स्नाइडेरियन मेंब्रेन या ओलफैक्ट्री मेंब्रेन भी कहा जाता है, इस झिल्ली को संक्रमित कर देता है जिससे हमारे सूंघने की क्षमता कम हो जाती है और हमारे अंदर श्लेष्मा का ज्यादा से ज्यादा निर्माण होने लगता है ताकि और राइनो वायरस हमारे अंदर ना आ सकें।

यह रोग भी संक्रमित व्यक्ति के द्वारा छींकने या खांसी के द्वारा निकले हुए ड्रॉपलेट्स जब किसी स्वस्थ व्यक्ति के अंदर सांस के द्वारा चला जाता है या संक्रमित व्यक्ति का इस्तेमाल किया गया वस्तु कोई स्वस्थ व्यक्ति इस्तेमाल कर लेता तो उससे भी संक्रमण हो जाता है।

Common cold, सर्दी जुकाम
जुकाम (Common cold)

लक्षण –

  • नाक का बंद हो जाता है क्योंकि ज्यादा से ज्यादा श्लेष्मा नाक में भर जाती है।
  • फटी आवाज निकलता है क्योंकि यह वाइरस हमारे कंठ यानी के pharynx को भी संक्रमित करती हैं।
  • खांसी आती है सर दर्द होता है थकावट होती है इत्यादि समस्याएं होती है।
  • यह बीमारी तीन से सात दिन तक रहती है।

प्रोटोजोआ जनित रोग

वे रोग जो प्रोटोजोअन सूक्ष्म जीव से होता है से प्रोटोजोआ जनित रोग कहलाते है। इसमें हम जो प्रोटोजोआ जनित रोगों के बारे में अध्ययन करेंगे।

मलेरिया रोग –

यह रोग प्लाज्मोडियम नामक एक प्रोटोजोअन जीव से होता है जो एकल कोशिकीय और परपोषी है। प्लाज्मोडियम की कई जातियां होती है लेकिन हम महत्वपूर्ण चार जातियों के बारे में बात करेंगे।

1. Plasmodium falciparum –

यह प्रजाति सबसे खतरनाक होती है यानी की जानलेवा होती है और यह भारत में संख्या के आधार पर दूसरे नंबर पर पाई जाती है। इससे Malignant Tertian Malaria होता है। Malignant का मतलब दुर्दम/जानलेवा, tertian का मतलब 3 और तीन का मतलब तीसरे दिन पर बुखार आएगा यानी की 48 घंटे बाद और मलेरिया कॉमन शब्द है।

2. Plasmodium Vivax-

यह प्रजाति पहले वाले से थोड़ा कम खतरनाक है यानी की यह जानलेवा नहीं है। भारत में इसकी सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। इससे Benign tertian malaria होता है। Benign का मतलब सुदम यानि कि जानलेवा नहीं है, tertian का मतलब 3 और तीन का मतलब तीसरे दिन पर बुखार आएगा यानी की 48 घंटे बाद और मलेरिया कॉमन शब्द है।

3. Plasmodium malariae –

यह प्रजाति थोड़ा और कम खतरनाक है यह भी जानलेवा नहीं है। भारत में यह संख्या के आधार पर तीसरे स्थान पर पाया जाता है।  इससे Benign quartan malaria होता है। Benign का मतलब सुदम यानि कि जानलेवा नहीं है, quartam का मतलब 4 और चार का मतलब चौथे दिन पर बुखार आएगा यानी की 72 घंटे बाद और मलेरिया कॉमन शब्द है।

4. Plasmodium ovale –

यह प्रजाति सबसे कम खतरनाक है। यह भारत में न के बराबर पाया जाता है। इससे Benign tertian malaria होता है। Benign का मतलब सुदम यानि कि जानलेवा नहीं है, tertian का मतलब 3 और 3 का मतलब तीसरे दिन पर बुखार आएगा यानी की 48 घंटे बाद और मलेरिया तो कॉमन शब्द है।

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प्लाज्मोडियम का जीवनकाल – 

प्लाज्मोडियम द्विपरपोषी (Digenetic) होता है। द्विपरपोषी का मतलब ऐसे जीव जो अपना जीवन दो अलग-अलग होस्ट या पोषियों में व्यतीत करते हैं उन्हें द्वि परपोषी कहा जाता है। इनका प्राइमरी होस्ट मादा एनाफिलीज मच्छर होता है और द्वितीय मनुष्य होता है। अब आपके दिमाग में एक प्रश्न उठ रहा होगा की प्राइमरी होस्ट एनाफिलिज मच्छर को क्यों कहा और द्वितीय होस्ट मनुष्य को क्यों कहा इसके साथ साथ मादा एनाफिलीज मच्छर को क्यों कहा नर को क्यों नहीं कहा और सेकेंडरी में आपने सिर्फ मनुष्य कहा इसमें नर और मादा नहीं कहा। तो चलिए मैं आपको इसका भी जवाब दे देता हूं।

देखिए वे जीव जो अपने जीवन काल को दो अलग-अलग जीवो में पूरा करते हैं और उनमें से जिस जीव में लैंगिक जनन करते हैं उनको प्राइमरी होस्ट कहा जाता है। हम लोगों ने देखा कि मादा एनाफिलीज के अंदर प्लाज्मोडियम का लैंगिक जनन होता है इसलिए मादा एनाफिलीज मच्छर को प्राथमिक पोषक कहा गया। प्लाज्मोडियम मादा एनाफिलीज मच्छर का सबसे अच्छा वाहक होता है कैसे।

क्योंकि मादा एनाफिलीज मच्छर का पोषण हमारे रक्त से मिलता है और यह हमारे रक्त को चूसते हैं जिसके माध्यम से प्लाज्मोडियम मनुष्य के अंदर चले जाते हैं जबकि नर का पोषण मकरंद, परागकण से मिलता है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नर के मुख में केवल चूषक होता है छेद करने वाला नहीं होता है लेकिन मादा मच्छर में छेद करने वाला भी होता है इसलिए वह आसानी से छेद करके रक्त को चूस लेती है।

मनुष्य में प्लाज्मोडियम जाने के बाद अलैंगिक जनन दर्शाते हैं इसलिए इन्हें द्वितीय पोषी कहा जाता है। मनुष्य में नर हो या मादा यह दोनों में से किसी के अंदर अपना जीवन चक्र पूरा कर सकता है।

प्लाज्मोडियम का जीवन चक्र –

प्लाज्मोडियम मादा एनाफिलीज मच्छर के लार में पाई जाती है और इस अवस्था को जीवाणुज (Sporozoite) कहते हैं। यह अवस्था संक्रामक अवस्था कहलाती है क्योंकि जब कोई मादा एनाफिलीज मच्छर हमे काटता है तो यह हमारे रक्त में चली जाती है। एक बार मच्छर काटने से हमारे रक्त में 5 से 10000 प्लाज्मोडियम चले जाते हैं। रक्त में पहुंचने के बाद इन्हें पोषण की जरूरत होती है और पोषण में इन्हें ग्लाइकोजन और ग्लोबिन प्रोटीन चाहिए होता है।

सबसे पहले यह ग्लाइकोजन के लिए रक्त में बहते हुए हमारे यकृत में पहुंच जाते हैं क्योंकि वहां पर ग्लाइकोजन भरपूर मात्रा में उपस्थित होता है। जब यह प्लाज्मोडियम या स्पोरोज़ोईट यकृत में पहुंच जाते हैं तो प्लाज्मोडियम के इस अवस्था को Schizont कहा जाता है। अब यह schizont यकृत में उपस्थित ग्लाइकोजन को कंज्यूम करेंगे या खाएंगे और इसे खाने के बाद इन्हें ऊर्जा मिलेगी और इस ऊर्जा का इस्तेमाल करके यह schizont अपने आप को छोटे-छोटे भागों में खंडित कर लेते हैं।

Plasmodium life cycle
Plasmodium Life cycle

इन छोटे-छोटे संरचनाओं को merozoites कहते हैं। इस विभाजन की प्रक्रिया को बहु विखंडन कहा जाता है और यह बहु विखंडन एक प्रकार का अलैंगिक जनन होता है। इस बहु विखंडन को schizogony कहा जाता है। यह सभी कार्य यकृत के अंदर हो रहा है और जो merozoites होते हैं यह यकृत कोशिकाओं के अंदर होते हैं। अब इन कोशिकाओं को तोड़कर merozoites वापस से रक्त में आ जाते हैं।

अब इन्हें पोषण चाहिए पोषण में ग्लोबिन प्रोटीन चाहिए। ग्लोबिन प्रोटीन कहां मिलेगा चलिए जानते हैं। दोस्तों ग्लोबिन प्रोटीन हमारे रक्त में ही मिलता है जैसा कि आप लोग जानते हैं रक्त में RBC कोशिका मिलती है और इस आरबीसी के अंदर एक वर्णक होता है जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं। इस हीमोग्लोबिन के चार भाग होते हैं जिसमें 2 अल्फा और 2 बीटा पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएं पायी जाती है। ये दोनों मिलकर ग्लोबिन प्रोटीन कहलाती है। इसमें आयरन (Fe+2) भी पाया जाता है और यही आयरन हीमोग्लोबिन को लाल रंग प्रदान करता है और हमारे रक्त कोशिका में 80% RBC पायी जाती है जिस वजह से हमारा रक्त लाल रंग का होता है।

हमारे रक्त में आरबीसी का काम ऑक्सीजन का संवहन करना होता है और आरबीसी में ऑक्सीजन का संवहन हीमोग्लोबिन करता है और हीमोग्लोबिन अणु जो चार भागो से मिलकर बना है उसके प्रत्येक भाग से ऑक्सीजन का एक अणु जुड़ जाता है यानी कि एक हीमोग्लोबिन चार ऑक्सीजन अणुओं का संवहन करता है।

अब आप सोच रहे होंगे कि यह सब मैंने आपको क्यों बताया क्योंकि merozoites हमारे रक्त में आ गए हैं और उन्हें पोषण क्या चाहिए ग्लोबिन प्रोटीन जो आरबीसी में उपस्थित है। यह merozoites आरबीसी के अंदर हिमोग्लोबिन में जाती है।

वहां से ग्लोबिन प्रोटीन को कंज्यूम कर लेते हैं जिससे इनके पास एनर्जी हो जाती है और ये वृद्धि करने लगते हैं और जब वृद्धि कर जाते हैं तो इन संरचनाओं को Cryptomerozoites कहा जाता है। अब आरबीसी में आयरन (Fe+2) बचेगा इस आयरन को Cryptomerozoites एक एंजाइम निकालकर इन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देते हैं। आयरन के इन टुकड़ों को Haemozoin/हीमोजोइन कहा जाता है।

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अब एक आरबीसी में भर – भर कर cryptomerozoites और आयरन के छोटे-छोटे टुकड़े भरे पड़े हैं जिसके कारण आरबीसी फट जाती है और फटने से रक्त में cryptomerozoites और haemozoin आ जाते हैं। यह हीमोजोइन हमारे रक्त के साथ बहते रहते हैं और मांसपेशियों से टकराएंगे और मांसपेशियों को प्रेरित करेंगे अनियमित संकुचन और शिथिलन के लिए जिससे हमारी मांशपेशियां सिकुड़ती और फैलती हैं जिससे हमें ठिठुरन (Shivering) महसूस होती है।

अब ये cryptomerozoites जो हमारे रक्त में आ गई हैं यह और भी जो आरबीसी है उनके अंदर वापिस से चले जाएंगे और जब इसके अंदर चले जाते हैं तब हम इस chryptozoite को Trophozoite नाम से पुकारते हैं। अब यह Trophozoite ग्लोबिन प्रोटीन को कंज्यूम करेंगे और उस एनर्जी का इस्तेमाल करके अपने आप को विभाजित करते हैं और जो संरचनाएं बनाते हैं उन्हें युग्मक (Gametes) कहा जाता है। अब आरबीसी के अंदर ढेर सारी युग्मक भर जाएंगे जिससे आरबीसी फट जाएगी और युग्मक बाहर रक्त में आ जाएंगे।

अब मादा एनाफिलीज मच्छर जब संक्रमित मनुष्य को काटेगी और रक्त को चूसेगी तब उसके अंदर आमाशय में यह युग्मक चले जाएंगे और निषेचन करेंगे क्योंकि यहां पर अनुकूल परिस्थितियों होती हैं निषेचन के लिए और निषेचन के फलस्वरुप युग्मनज बन जाती है और इस युग्मनज को Ookinette कहा जाता है।

निषेचन होना और युग्मनज बनना एक लैंगिक जनन प्रक्रिया है। प्रतिकूल परिस्थितियों में युग्मनज टूट न जाए इसलिए यह अपने चारों तरफ एक दीवार बनाता है जिसे पुटिका cyst कहा जाता है। इस पूरी संरचना को oocyst कहा जाता है। जिसमे बाहर से cyst होता और अंदर युग्मनज होता है जिसे Ookinette कहा जाता है।

अब यह Ookinette या युग्मनज फिर से बहु विखंडन करेगा और सिस्ट के अंदर छोटी-छोटी संरचनाओं में टूटेगा और यह जो छोटी-छोटी संरचनाओं होती है इन्हें इस जीवाणुज (sporozoite) कहा जाता है। जो बहु विखंडन प्रक्रिया हुई उसे Sporogony कहा जाता है। फाइनली यह sporozoite मच्छर के आंत से होते हुऐ लार ग्रंथि में पहुंच जाते हैं अंततः जब मादा एनाफिलीज मच्छर कटती है तो फिर से मनुष्य के अंदर चले जाते हैं। इस तरह इसका जीवन चक्र चलता रहता है।

अमीबी अतिसार या अमीबी पेचिस या Amoebiasis –

यह रोग एन्टअमीबा हिस्टॉलिटिका नामक एक प्रोटोजोअन जीव से होता है। यह प्रोटोजोआ ज्यादातर संदूषित भोजन और मल पर पाया जाता है और जब संदूषित भोजन या मल पर मक्खियों बैठती हैं तो उनके पैरों में चिपक जाती है और फिर हमारे भोजन पर आकर ये मक्खियां बैठती हैं तो उस भोजन में entamoeba histolytica आ जाती है और हम उस भोजन को खा लेते हैं इस भोजन के साथ यह हमारे अंदर चली जाती है और हमें बीमार कर देती है।

amoebiasis, अमीबी पेचिस
मानव स्वास्थ्य तथा रोग नोट्स

लक्षण 

इससे हमारे पेट में दर्द, ऐंठन कब्ज और अत्यधिक श्लेष्मा के साथ-साथ रक्त के थक्के वाला मल आता है।

कृमि जनित रोग

वे रोग जो कृमिओ से होते हैं कृमि जनित रोग कहलाते हैं। इसमें हम दो कृमि जनित रोग के बारे में अध्ययन करेंगे।

Ascariasis –

यह रोग Ascaris lumbricoids नामक कृमि से होता है। यह कृमि संदूषित पानी, शाक सब्जियों फलों इत्यादि के खाने से हमारे शरीर में पहुंच जाता है और संक्रमण कर देता है। इन कृमियों के अंडे पानी में होते हैं। इस रोग से हमारे शरीर में बुखार, मांसपेशियों में दर्द, रक्त की कमी, आंतरिक रक्तस्राव, आंत का अवरोध आदि समस्याएं होने लगती हैं। मुख्य रूप से ये हमारे आहार नाल को प्रभावित करते हैं।

Filarisis या Elephantasis या हाथी पांव –

यह रोग दो कृमि Wuchereria bancrafti और Wuchereria malayi से होता है। यह रोग मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होता है। क्योंकि जब यह मच्छर काटती है तो यह कृमि हमारे शरीर के अंदर चले जाते हैं और यह हमारे पैरों के लसिका वाहिकाओं को संक्रमित करते हैं जिससे हमारे पैर की लसिका वाहिकाएं फूलने लगती है और हमारा पैर मोटा हो जाता है इसके साथ-साथ यह पुरुषों में वृषणकोष (scrotum) को भी संक्रमित कर देती है जिससे वृषणकोष भी फूल जाता है।

हाथी पांव, filarisis, elephantiasis
हाथी पांव, फ़ाइलेरिया,

कवक जनित रोग

वे रोग जो कवकों से होते हैं कवक जनित रोग कहलाते हैं।

दाद/Ringworm/Tinea – 

मुख्य रूप से कवक के तीन वंश है जो दाद या रिंगवॉर्म के लिए उत्तरदाई होते हैं। माइकोस्पोरम, एपिडर्मोफाइटॉन और टाइकोफाइटॉन। यह रोग ज्यादातर त्वचा, बाल और नाखून में होता है।

ringworm, दाद
मानव स्वास्थ्य तथा रोग नोट्स

रोगों का नियंत्रण –

इन रोगों का नियंत्रण करने के लिए आपको कुछ काम करने होंगे जैसे खुद को साफ सुथरा रखना होगा स्वच्छ जल पीना होगा अपने आसपास साफ सफाई रखना है। कीचड़, नाले, गड्ढे, जहां पर पानी रुका हुआ है सड़ रहा है ऐसे जगह को साफ सुथरा रखना है। सोते समय मच्छरदानी का उपयोग करना है। आसपास के जो गड्ढे हैं जहां पर पानी भरा रहता है उसमें आप गैंबुसिया और गप्पी नामक मछली डाल सकते हैं जो मच्छरों के लार्वा को खा जाते हैं आप रोगाणुओं को मारने के कीटनाशक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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