नील हरित शैवाल क्या है? पूरी जानकारी

दोस्तों आज के इस लेख में हम नील हरित शैवाल (Blue green algae) के बारे में जानेंगे जैसे नील हरित शैवाल किसे कहते हैं, इनकी उत्पत्ति कब हुई, यह कैसे जीवाणु है, यह कौन सा प्रकाश संश्लेषण करते हैं। ऐसे कई प्रश्नों के उत्तर हम इस आर्टिकल में जानेंगे तो चलिए बिना समय बर्बाद किये शुरू करते हैं।

नील हरित शैवाल की उत्पत्ति कब हुई?

ऐसा माना जाता है कि इनकी उत्पत्ति 3 बिलियन वर्ष पहले हुआ था। 

नील हरित शैवाल ग्राम पॉजिटिव जीवाणु है या ग्राम नेगेटिव जीवाणु है?

नील हरित शैवाल ग्राम नेगेटिव जीवाणु हैं। 

दोस्तों नील हरित शैवाल इस पृथ्वी पर सबसे पहले जीव हैं जिन्होंने प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के द्वारा ऑक्सीजन की उत्त्पत्ति की थी या ऑक्सीजन को मुक्त किया था।

इस पृथ्वी पर सबसे पहले प्रकाश संश्लेषण कौन सा हुआ था?

इस पृथ्वी पर सबसे पहला प्रकाश संश्लेषण यह हुआ था।

6CO2 + 12H2S → C6H12O6 + 6H2O + 12S (प्रकाश की उपस्थिति में)

इस प्रकाश संश्लेषण में ऑक्सीजन की उत्पत्ति नहीं हुई थी इसलिए इसे वास्तविक प्रकाश संश्लेषण नहीं कहा जाता है यह प्रकाश संश्लेषण सल्फर बैक्टीरिया किये थें जबकि वास्तविक प्रकाश संश्लेषण उसे कहते हैं जिसमें ऑक्सीजन का निर्माण होता है जिसका अभिक्रिया निम्नलिखित है

जरूर पढ़ें -  तिलचट्टा क्या होता है? Kitane pair hote hain जानिए A-Z

6CO2 + 12H2O → C6H12O6 + 6O2 + 6H2O (प्रकाश की उपस्थिति में)

यह प्रकाश संश्लेषण सबसे पहले नील हरित शैवाल ने किया था इसमें ऑक्सीजन की उत्पत्ति हुई थी जैसा कि मैंने आपको पहले ही बता दिया है।

प्रकाश संश्लेषण किसे कहते हैं?

जब प्रकाश की उपस्थिति में किसी पदार्थ का संश्लेषण किया जाता है तो उस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।

नील हरित शैवाल किसे कहते हैं? What is Blue green algae in hindi?

नील हरित शैवाल या सायनोबैक्टीरिया एक प्रकाश संश्लेषण करने वाले प्रोकैरियोट्स है। ये आइसोलेटेड कोशिकाओं के रूप में होते हैं या छोटे समूह या बहुकोशिकीय कॉलोनी बनाते हैं, इनकी कोशिका एक दूसरे से चिपक — चिपक कर रहते हैं और एक तंतु का निर्माण करते हैं जिसे ट्राइकोम कहते हैं।

नील हरित शैवाल
Blue Green Algae

कुछ नील हरित शैवाल के इस तंतु के अंत में एक कोशिका मिलती है जिसे नील हरित शैवालकहते हैं। यह एक विशेष प्रकार की संरचना है जिसमें नाइट्रोजन स्थिरीकरण होता है। क्या यह सभी में मिलती है नहीं यह कुछ ही नील हरित शैवाल में मिलती है जैसे ऐनाबीना

यह ऐनाबीना साइकस और रोजोला पादपों के मूलों के साथ सहजीवी संबंध स्थापित करती है और इन मूलों को परवाल मूल (coralloid root) कहते हैं और भी नील हरित शैवाल होते हैं जो सहजीवी संबंध स्थापित करते हैं जैसे नॉस्टक, ओलोसेला, सिलोटेरिया आदि। सायनोबैक्टीरिया में उच्च पादपों के समान क्लोरोफिल-a पाया जाता है।

ट्राइकोडेस्मियम इरिथ्रियम एक ऐसे नील हरित शैवाल है जो लाल समुद्र के लिए उत्तरदायी होते हैं।

इस पृथ्वी पर कौन सा जीव है जिससे सबसे ज्यादा प्रोटीन मिलता है?

स्पिरुलिना एक ऐसा जीव है जिससे सबसे अधिक प्रोटीन मिलता है यह एक नील हरित शैवाल है। और दूसरे नंबर पर जो है उसे क्लोरेला कहते हैं। यह एक हरी शैवाल है और यह यूकैरियोटिक जीव है।

जरूर पढ़ें -  केन्द्रक किसे कहते हैं? परिभाषा, खोज, संरचना, कार्य

दोस्तों नील-हरित शैवाल, शैवाल नहीं हैं लेकिन कई मायनों में बैक्टीरिया से मिलते जुलते हैं। इसलिए इन्हें साइनोबैक्टीरिया भी कहा जाता है इसमें Flagella और Pilli नही होते हैं। नीले-हरे शैवाल की एक विशिष्ट कोशिका में निम्नलिखित कोशिकांग और आवरण होते हैं।

नील हरित शैवाल
Blue Green Algae

चिपचिपी परत या जिलेटिनस आवरण-

दोस्तों यह नील हरित शैवाल की कोशिका का सबसे बाहरी आवरण होता है यानी की यह कोशिका भित्ति के बाहर मौजूद सबसे बाहरी आवरण है। यह चिपचिपा होता है और इस चिपचिपी परत के कारण नील हरित शैवाल सरक कर ऊपर आ सकता है।

कोशिका भित्ति (Cell wall) –

दोस्तों नील हरित शैवाल की कोशिका भित्ति बैक्टीरिया की कोशिका भित्ति जैसा दिखता है और लिपोप्रोटीन, लिपोपॉलीसेकेराइड और म्यूकोप्रोटीन से बनता है।

प्लाज्मा झिल्ली (Plasma membrane)- 

यह प्लाज्मा मेंब्रेन एक झिल्ली से बनी होती है।

कोशिका द्रव्य (Cytoplasm)-

नील हरित शैवाल की कोशिका द्रव्य में एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम, गोल्गी कॉम्प्लेक्स, माइटोकॉन्ड्रिया और लाइसोसोम नहीं पाये जाते हैं। इसमें राइबोसोम 70S प्रकार के होते हैं और ये कोशिका द्रव्य में स्वतंत्र रूप से फैले होते हैं और प्रोटीन संश्लेषण के दौरान पॉलीराइबोसोम बनाते हैं।

दोस्तों नील हरित शैवाल के कोशिका द्रव्य में प्रकाश संश्लेषण करने के लिए क्लोरोफिल और कैरोटीनॉयड वर्णक भी होते हैं। ये चपटी थैलियों में होते हैं जिन्हें लैमेला (lamellae) या थायलाकोइड्स (thylakoids) कहा जाता है। लैमेला को संकेन्द्रित रूप से व्यवस्थित किया गया है।

इनमें उच्च पौधों की तरह ऑक्सीजन उत्पन्न करने वाली प्रकाश संश्लेषक तंत्र होती है और ऑक्सीजन का उत्पादन करती है। साइटोप्लाज्म में नीला वर्णक फ़ाइकोसायनिन और लाल वर्णक फ़ाइकोएरिथ्रिन भी होता है। इन दोनों वर्णकों को सामूहिक रूप से फ़ाइकोबिलिन के रूप में जाना जाता है और ये छोटे कणिकाओं के अंदर पाए जाते हैं जिन्हें सायनोसोम्स या फ़ाइकोबिलिसोम्स कहा जाता है। ये कण लगभग 4 एंगस्ट्रॉम व्यास के होते हैं।

जरूर पढ़ें -  जैव विविधता क्या है? जानिए A-Z आसान भाषा में

निष्कर्ष –

दोस्तों आशा करता हूँ कि नील हरित शैवाल के बारे में दी गयी जानकारी आपके लिए हेल्पफुल रही होगी और यदि आपको यह लेख पसंद आयी हो तो इसे शेयर कीजिये और कमेंट कीजिये।

धन्यवाद

Leave a Comment

error: Content is protected !!